ज़िंदगी पल-पल करके ढलती रही - ज़िंदगी पल-पल करके ढलती रही นิยาย ज़िंदगी पल-पल करके ढलती रही : Dek-D.com - Writer

    ज़िंदगी पल-पल करके ढलती रही

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    อัปเดตล่าสุด :  5 มิ.ย. 52 / 00:27 น.


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      ज़िंदगी पल-पल करके ढलती रही......
      बस अपने रंग रूप बदलती रही..........
      और उन्ही बीतते पलों का हुआ कुछ ऐसा सिला........
      कि मेरा मासूम दिल तुझसे जा मिला.........

      इस दिल ने प्यार का ,भावनाओं का ,सपनो का एक जाल बुना.....
      जिस का एक सिरा था मेरे पास दूसरा तेरे दिल से जा मिला.........

      अब यदि तेरे दिल में भी प्यार सच्चा है......
      तो पकड़ के खीच लो इस धागे को........
      मैं ख़ुद ही खीची चली आऊंगी

      यदि छोड़ दिया तूने इस धागे को......
      तो मैं इस धागे में उलझ कर रह जाऊंगी .......
      फिर तुम इस धागे को सुलझाना भी चाहोगे.......
      तो भी सुलझा नही पाओगे.........
      क्यों कि इस धागे की उलझन में
      कई नये रिश्ते ,कई नयी गाँठे पाओगे........
      करना चाहोगे तब प्यार मुझे पर कर नही पाओगे........

      अभी मेरा प्यार सीधा, सच्चा, मासूम है........
      नही निभेगा अगर तुमसे तो अपना सिरा भी मुझे लौटा दो......
      मैं अपने प्यार के धागे को यूँ ही नही उलझने दूँगी......
      तुमसे जुड़ी अपनी हसीं भावनाओं, जज़्बातों को यूँ ही नही खोने दूँगी...........

      करती हू तुमसे वादा की.........
      मेरे तरफ़ के सिरे में तेरे लिए यही लिपटा हुआ बस प्यार होगा........
      तू चाहे वापस आए ना आए.........
      इस धागे मैं मेरी अंतिम साँस तक बस तेरा नाम होगा..........

      पर.........बस एक सवाल पूछती हूँ तुझसे....
      तेरी तरफ़ जो सिरा है.......
      क्या इस पर तब भी मेरा नाम होगा?
      मेरे लिए यही हसीन जज़्बात,प्यार

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